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सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्रणाली
ब्रह्मचर्य-जीवन

ऋषि दयानंद सरस्वती
12 फ़रवरी 1824
टंकारा, गुजरात।

स्वामी श्रद्धानंद
22 फ़रवरी 1856
तलवान, जालन्धर, पंजाब।

पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी
पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी का जन्म 26 अप्रैल, 1864 ई. में परतंत्र भारत के मुल्तान में प्रसिद्ध वीर सरदाना कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम लाला रामकृष्ण था। गुरुदत्त जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा मुल्तान में पाई और फिर लाहौर आ गए। यहाँ लाला हंसराज और लाला लाजपत राय भी पढ़ रहे थे। तीनों की आपस में बहुत घनिष्ठता हो गई। गुरुदत्त को विज्ञान में रुचि थी, इसके कारण वे हर चीज को विज्ञान की कसौटी पर कस कर देखते थे। कुछ समय बाद पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी आर्य समाज के सम्पर्क में आये। 1883 में जब स्वामी दयानन्द सरस्वती बीमार थे, तो लाहौर से दो लोगों को उनकी सेवा के लिये भेजा गया, जिसमें से एक गुरुदत्त भी थे।
पण्डित लेखराम
पंडित लेखराम आर्य (१८५८-१८९७), आर्य समाज के प्रमुख कार्यकर्ता एवं प्रचारक थे। उन्होने अपना सारा जीवन आर्य समाज के प्रचार प्रसार में लगा दिया। वे अहमदिया मुस्लिम समुदाय के नेता मिर्जा गुलाम अहमद से शास्त्रार्थ एवं उसके दुस्प्रचारों के खण्डन के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। उनका संदेश था कि तहरीर (लेखन) और तकरीर (शास्त्रार्थ) का काम बंद नहीं होना चाहिए। पंडित लेखराम इतिहास की उन महान हस्तियों में शामिल हैं जिन्होंने धर्म की बलिवेदी पर प्राण न्योछावर कर दिए। जीवन के अंतिम क्षण तक आप वैदिक धर्म की रक्षा में लगे रहे। पंडित लेखराम ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए हिंदुओं को धर्म परिवर्तन से रोका व शुद्धि अभियान के प्रणेता बने।


ओ३म् विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव ।
यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥१॥
बौद्धिक एवं शारीरिक उन्नति का मार्ग


