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प्रत्येक भारतीय की तरह हमारे हदय में भी एक स्वप्न स्वभाविक रुप से पल रहा है और वह स्वप्न है कि भारत को पुनः विश्व गुरु का स्थान मिल सके। यह कार्य अत्यन्त दुष्कर प्रतीत होता है और वास्तव में दुष्कर है भी, किंतु किसी भी संकल्प की सिद्धि के लिए उस दिशा में प्रथम कदम बढाना आवश्यक है। यदि हम एक जुट होकर प्रयास करें तो हमें सफलता निश्चित रूप से मिलेगी इस दृढ़ विश्वास के साथ इस स्वप्न को सत्य करने के लिए हम लोग कुछ प्रयास कर रहे हैैं, हमारे संकल्प की सिद्धि के लिए हम द्विसूत्रीय प्रयास कर रहे है।
    प्रथम में हमें अपने सभी भाइयों  एवं बहनों को वैदिक धर्म की यथार्थता से अवगत कराना है, जिसके लिए हम समय-समय पर विभिन्न स्थलो में एक/दो दिवसीय शिविर का आयोजन करते हैं। शिविर में हमें ज्ञात कराया जाता है कि हमारा वैदिक धर्म कितना महान है, किसी भी प्रकार की कुरीतियों का इसमें कोई स्थान नही है, यह एक मात्र तार्किक एवं निर्णायक सत्य है, इस शिविर के दौरान सभी की जिज्ञासाओं का समाधान तर्कपूर्वक ढंग किया जाता है। इस शिविर का एक मात्र उद्देश्य है कि हम एकजुट होवें, हमें सत्य का ज्ञान होवें, जिससे हम दूसरों को तथा अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी सत्य से अवगत करा सकें।
    द्वितीय हम अपनी प्राच्य शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयासरत हैं, हम भारत को पुनः गुरुकुलों का देश बनाना चाहते है। हम चाहते है कि भारत में पुनः तक्षशिला एवं नालन्दा के समान गुरुकुल स्थापित हो जिसमें शिक्षा लेने के लिए देश-विदेश के विधार्थी आयें, हमारा उद्देश्य आधुनिक गुरुकुल बनाना है जिसमें वेद, वैदिक गणित, वैदिक भौतिकी, वैदिक रसायन के साथ-साथ विभिन्न विदेशी भाषाओं आदि की शिक्षा भी दी जायेगी तथा आधुनिक तकनीक का वेद के साथ सामन्जस्य स्थापित कराया जायेगा। जब ऐसे गुरुकुल से शिक्षा लेकर विद्यार्थी बाहर निकलेंगे तो वह एक संपूर्ण व्यक्तित्व के साथ विभिन्न पदों पर आसीन होकर संपूर्ण विश्व को दिशा दे सकेंगे। हम पुनः विश्व को आर्यभट्ट, चरक, ब्रह्मगुप्त, वराहमिहिर, द्रोण, आचार्य भास्कर, आचार्य शंकर, आचार्य चाणक्य और दयानन्द आदि देना चाहते हैं।

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